वित मवेसी 
धुड्ड हुई घणघास चर, पीधां पालर नीर। 
भेंस्यां पाडी हेज सूं, वैगी हुवै वहीर।।203।। 
                    गाय भेस खाथी बहै, खाथौ एवड़ खास। 
                      गुदलक वेला गांव में, अड़ै खंख आकास।।204।। 
                    मिनखां सूं देखण मिलै, द्रावां हेज सवाय। 
                      एवाड़ै नै उरणिया, गाडर गुवौै गुंजाय।।205।। 
                    पटकै भेंस्यां पेंकड़ा, पाडै हेज पुकार। 
                      ऊंवाड़ौ दूधां भर्यां, थुथकौ रालै नार।।206।। 
                    भरदी झागां बालटी, धरर धरर पय धार। 
                      भेंसड़ियां धणियाणियां, हुय जावै हथवार।।207।। 
                    प्रिय दादी नूं पोतरा, सिरै मूल सूं सूद। 
                      पीवण सारू गाय रौ, दै सेडाऊ दूध।।208।। 
                    खायौड़ौ खारज नहीं, आडौ हरदम आय। 
                      बिन खायां कमजोर तन, वेदां वटत बधाय।।209।। 
                    द्रावां आछी आयगा, रैवण भलौ मकांन। 
                      चवै नहीं चूनौ सिमट, कारीगर रौ मांन।।210।। 
                    मेहा थारी महर सूं, बीडां हरियल घास। 
                      धापै गाय'र भेसियां, बधै दूध री आस।।211।। 
                    बधियौ बीड़ै घास घम, चोखौ द्रावण चरांण। 
                      पालर सिझारा पियां, पूरा आवै पांण।।212।। 
                    धापै राती धोलची, गोचर ऊभी गाय। 
                      सिझ्या पलार नीर पी, सौकड़ दहै मनाय।।213।। 
                    आलस नथी एवालियां, अलगा अलगा जाय। 
                      हरखै पड़त अंगोर में, गाडर टाट चराय।।214।। 
                    भेंस्यां वाड़ै आवतां, कूंडै वंटाौ त्यार। 
                      ठांण भरे थट खोलती, चरण निसाआधार।।215।। 
                    चारा मन चाया चरै, हांण फसल दै रोज। 
                      चौमासे जबरी हुई, सूनी गायां मौज।।216।। 
                    मन चाया बीड़ां चरै, घोड़ा घोड़ी घास। 
                      हूंक हूंक कर हांडवै, इसा रासबा पास।।217।। 
                    बीड़ां माठां खेत बिच, बेल्या चरै निसंक। 
                      सजग रूखाली सागड़ी, राखै आठूं  टंक।।218।। 
                    ऊंटा रा टोला अबै, गया कांकड़ां छोड। 
                      रेबारी ले चालिया, खेती हीणै जोड।।219।। 
                    करसणी 
वैगी रोटी साग कर, द्रावा दिया उछेर। 
चखै बीड़ै चारबा, करदी बेटी लेर।।220।। 
                    दोपारी खारी धरी, टोगड़ छाली टोल। 
                      चाय थकेलौ तराबा, बणसी तीजै गोल।।221।। 
                    बोइयै छाली बांध दी, टोगड़ खेजड़ माठ। 
                      ऊंधौ कूंडौ मार नै, दोपारी दी दाट।।222।। 
                    पांनै करियोड़ी कसी, लांम्बौ वांसौ लार। 
                      ढूकी करण निनांण नूं, ऊमरिया इकसार।।223।। 
                    कसी पड़त खाड़ौ करै, सुरड़ै घास समेत। 
                      तरणी तपतै तावड़ै, खोलै बंध्यौ खेत।।224।। 
                    धोला टोका धुर दिसा, आवै दिसा अगूण। 
                      बाजत थमगौ वायरौ, देह पसेवौ दूण।।225।। 
                    साख टाल बावै कसी, गत्तु न छोड़ै घास। 
                      किरसांणां कारीगरां, करसण रौ उकरास।।226।। 
                    हुवै पसेवौ होड़ हूं जोड़ै करत निनांण। 
                      कामण लारै नीं रहै, कंतै फुरती जांण।।227।। 
                    मुखसूं खाली कुचपड़ै, धण परसेवै धार। 
                      अग ूपर जांणक रलै, छांट बादली आर।।228।। 
                    परसेवा री बूंदड़ी, चमकै कामण गात। 
                      जांणक सतदल ऊपरां, पड़ी ओस परभात।।229।। 
                    मुख मण्डल झटकौ लग्यां, आयौ घुंघट ओट। 
                      सस नै जांणक ढाकियौ, झीणौ बादल गोट।।230।। 
                    कट पतली पतलौ उदर, उरज विकासी आब। 
                      केक जंघसी कामणी, देवण कंतै लाब।।231।। 
                    वरियां राता तन वसन, नारी करत निनांण। 
                      जांणक गुलाब बागरौ, हिलै हवा रै पांण।।232।। 
                    साखवाड़ी 
किरसांणां करसणकियौ, घर मायड़ सदभाव। 
सावण हंदी साख रौ, आछौ थयौ उगाव।।233।। 
                    छींदा छीदा दीखात, बाजर बांध्या बूंट। 
                      जांणक बालक दूबलै, रहियौ जोबन तूठ।।234।। 
                    कंपेली जाडी पड़ी, जोहां थाय जंवार। 
                      चखां निरखती करसणी थ्यावस दै थुथकार।।235।। 
                    पत्तां बिल लीली पड़ी, लाम्बी थकी लकीर। 
                      लील ज्वांर इण नूं कहै, मीठै पण में सीर।।236।। 
                    हवलै हवलै सूरियौ, बाजरियौ विरदाय। 
                      काचा छोटा बूंटकां, परवाई परखाय।।237।। 
                    विकसण बूटा बांधतौ, तांता दियो पसार। 
                      मोठ मुदायत मुरधरा, साख सावणूं सार।।238।। 
                    बग्गर मोठा वापरै, मागजियौ मनसूब। 
                      परवाई पीछम तणै, खाय मचौला खूब।।239।। 
                    करसौ बायौ कोड सूं, गाज छांट दिन टाल। 
                      ग्वार परालू में हुवै, आवण फाल उंताल।।240।। 
                    मौकैसर बिरखा हुवै, आवै तिस ना और। 
                      गम राखै दम घणकरां, किरसाणां सेजोर।।241।। 
                    मूंगां मोटा पांनड़ां, बद डाला फैलाय। 
                      फालंंा आयौड़ौ फवै, निरखणियां हरखाय।।242।। 
                    भेल्यौ तिलड़ा बाजरी, खबू जंवारां खास। 
                      बटत करावण कोरडू, मूंगां री घण आस।।243।। 
                    करसौ खेत संवार दै, तिल छांट्या तजबीज। 
                      डाला छलै छलील पण, चोखी रोकड़ चीज।।244।। 
                    चंवलां तांता चालिया, आसै पासै एम। 
                      रमता टाबर बेसमझ, जाय पड़ोसी जेम।।245।। 
                    आछौ करसण खात अर, मेहत खेत कड़पांण। 
                      वेला बायां धान रुत, न्याल हुवै किरसांण।।246।। 
                    बेलां तांता पस रता, गल लागै द्रुम साथ। 
                      ज्या चढ जावै झाड़का, बाजर घालै बाथ।।247।। 
                    हिरयल मोटा पांनड़ा, फूलत पीला फूल। 
                      काकड़ियां री बेलड़ी, जोबन में मसकूल।।248।। 
                    रूंवाली आई थकी, टींडसियां री वेल। 
                      साग करावै सांतरा, तकड़ै छमकै तेल।।249।। 
                    बधै भादवै बेलड़ी, कोडाई कालींग। 
                      पनड़ी बलियां पाकसी, तड़फ खांण तरसींग।।250।। 
                    बेलड़ ढाक्यौ कैर तन, आसिक पणै अजेज। 
                      जांणक दुरबल कंत नै, ढकियौ कामण सेज।।251।। 
                    रूंखां फैरां बांटका, झाड़कियां चढ जाय। 
                      बेलड़ियां घण भांतरी, बरसालौ बिकसाय।।252।। 
                    धोरा 
आयां धोरा ऊपरै, घण चख हरियल घास। 
प्रोढ़ां जेम पयोधरां, ढकै हरित पट वास।।253।। 
                    मुरधर सावण सोहणौ, हरियल धोरां हूंत। 
                      साजन सजनी साथज्यूं, अनुरागी आकूंत।।254।। 
                    ग्रीखम रेत उडावता, रिंदरोही रैवास। 
                      बरसालै हरियल थयां, धोराआवै रास।।255।। 
                    हरियाली धोरां तणी, आबा देवै एम। 
                      पीर मझारां ओपती, हरियल चादर जेम।।256।। 
                    हिरणी धोरां घास चढ़, कूद कूद नै खाय। 
                      ऊन्हालै री एवजी, काढै कसर सवाय।।257।। 
                    अदका सावण ओपता, लोकै जबर लरवाय। 
                      हरियल धोरा सोहणा, म्हारै मुरधर मांय।।258।। 
                    डूंगर 
इण धती रै ऊपरां, मेह  बिन सह मोल। 
करिया,  हरियल भादवौ,  डूंगरियां रा डोल।।259।। 
                    आभा हरियल डूंगरां, ऊपर छाई एम। 
                      हरित वसन सूं ढाकिया, कुच  धण नवली जेम।।260।। 
                    घास ढाकियौ पाथरां,  हुवलौ हरित सह रूप। 
                      डूंगर सावण भादवै,  आबा रहै अनूप।।261।। 
                    बादल डूंगर घेरिया,  चमकै, तिण  में बीज। 
                      जांणक कंतै बांह गल घालै कांण रीझ।।262।। 
                    ओपै डूंगर ऊपरां,  झड़ बिरखा री जोर। 
                      चाढ़ै जल सिव ऊपरां, जिम  सेवग अठ पौर।।263।। 
                    ढकिया पाथ घास सूं, परकत  बिरखा पांण। 
                      बुरी बात ज्यूं मीत री,  ढाकै मिनख सुजांण।।264।। 
                    मेहौ सावण भादवै,  नग हरियाली थाय। 
                      छोटा मोटा रूंखड़ां, परबत आब बधाय।।265।। 
                    सिंझ्या 
                      आंथूणौ रिव  आंथौ, घिरियौ  बादल हूंत। 
                      धण मुख बिच केसावली, ओपै  जिम आकूत।।266।। 
                    सिंझ्या सूरज  आंथतौ, औपै  यूं अणपार। 
                      कनक कलस ज्यूं ऊंचियां जाय दिवस पणिहार।।267।। 
                    सींग भेसिंया पलकवै,  सांझ किरण रि व झाल। 
                      डारां हंसां ज्यूं डगर, चांपै  गायां चाल।।268।। 
                    ल्हेरां सूं  पांणी हिलै,  हिलै सूर दरसाव। 
                      जांणक सरवर सांझरा,  झूलै बयल उछाव।।269।। 
                    तारा निकलै देखतम,  आबगिगन आकूत। 
                      ओढ्यौ सिंझ्या  ओरणौ, जड़ियौ  दालयां हूंत।।270।। 
                    सिंझ्या पूली  सांतरी, बावइयै  नम बेंण। 
                      जाबक बिरखा जोर में, गुदलक  रातड़ गेंण।।271।। 
                    परभात 
पीलै बदाल पंछियां, लावौ कलरव लेय। 
सूता रहियां हांण छै, नरां  सनेसौ देय।।272।। 
                    दूध चूंगबा आस में, दोरी  काढी रात। 
                      तड़फा खूंटै तोड़वै,  टोगड़िया परभात।।273।। 
                    काला बादल छाविया,  रिव ऊगौ परभात। 
                      किरणा सूं राता किया, धन  नभ हाथौ हाथ।।274।। 
                    तपियौ सोनै थालसौ,  एम दरस रिव प्रात। 
                      जांणक टीकी भाल दै, आई  नार प्रभात।।275।। 
                    नभ रातौ रिव ऊगतौ, खाथौ  मिटै अंधेर। 
                      आयां ज्यूं पिव आंगणै, हरख  उजासौ हेर।।276।। 
                    ओढ्यां रातौ  ओरणौ, लाडू  चमक दिखात। 
                      इसड़ी दिसा अगूंण सूं, आई  धण परभात।।277।। 
                    एवड़ चांपौ ऊछरै,  करसा खेतां कूंच। 
                      परभातै कलर  व करै,  पंछीड़ा आगूंच।।278।। 
                    पड़तां धण मुख ऊपरां, रिव  पर भात उजास। 
                      जल भरती प्रतिबिम्ब औ, पलकै जबर प्रकास।।279।। 
                    परभाती पिणहार  बह, खाथी  रिव घट ऊंच। 
                      नीर उजालौ ऊझलै,  दिस अगूण आगूंच।।280।। 
                    चौमासौ 
                      भजन करण इण बगत में,  आवै मनां उछाव। 
                      संतां में दीखै सिरै, चौमासै  रौ चाव।।281।। 
                    सराजां व्है  सांतरा, रांमपोल  ना छीड़। 
                      संतां रा मुगती वचन, सुणबा  आवै भीड़।।282।। 
                    न्यारा न्यार  पंथ धर,  सोधै जीवण सार। 
                      उडै अहरनिस आवगौ,  रांम नांव रणकार।।283।। 
                    संत भला सुमरण करै, हरी  नांव हरमेस। 
                      मारग आछै घाल दै, दै  मिनखां उपदेस।।284।। 
                    तेज चंचला ग्यान जल, राम  नांव गुण गाज। 
                      संत भलेरी बादली,  आवै बरसण काज।।285।। 
                    चौमासै रा  सोम कर,  जपै मांनखौै जाप। 
                      हरियौ हरियौ जगत सह, महादेव  परताप।।286।। 
                    चंचल जीव चटोकड़ा,  गुण हीणा गरकाव। 
                      भगवां इसा लजायनै,  मेटै संतां आब।।287।। 
                    सुण'र कांन बारै करै,  असर नहीं उपदेस। 
                      जाय लजावै संत री, संगत  नै हरमेस।।288।। 
                    जाबतौ 
कफपित वात हुवै दुसित, असलेकां आकूत। 
सुद्धी करौ सरीर री, वमन विरेचन हूंत।।289।। 
                    ताजौ तातौ खावणौ, भोजन रूत बरसात। 
                      कांदौ मिसरी मूंग गुल, दिव्य नीर संघात।।290।। 
                    जौ गेहू चावल अवर, पापड़ सेत अचार। 
                      आछा रहवै एतला, बरसालै आहार।।291।। 
                    दाखासव जूनौ बलौ, परवल कैथ अनार। 
                      सेंधौ नमक मिलाय लै, हरर तणौ आहार।।292।। 
                    उरबांणौ फिरणौ नहीं, सोणौ मांचौ ढाल। 
                      गाभा गूदड़ धूप दै, रखौ अवस री भाल।।293।। 
                    फिरवै रात्यूं फिड़क़ला, दीपक रै नजदीक। 
                      ब्यालू करणौ दिन थकां, रह चौमासै ठीक।।294।। 
                    मछरां तणौ मलेरियौ, सबनै रहै सताय। 
                      माछरिया मछरां करै, बचवा करौ उपाय।।295।। 
                    जांझली 
                      पींड़ी गोडां बाजरी, तिसकारण वेतंत। 
                      मेह अवस ही आवसी, इण आसा जीवंत।।296।। 
                    मूंग मोठ तिलियां तणी, मेहा थां बिन मोल। 
                      बींगड़ियौ बरसात बिन,डालां पानां डोल।।297।। 
                    ऊपरी चढ़ती ऊमरां, जाबक सूख जंवार। 
                      मिटवै थां बिन मेहला, हरियल पणौ गंवार।।298।। 
                    कांटी आंटी आयगी, आस पड़ी उथलीज। 
                      अंवलौ आयौ मेहबिन, छित रही छैछीज।।299।। 
                    तिस झेरणियै तांतणै, मकड़ै नहीं उमाव। 
                      लांची कारण लेलरू, द्राव न चरबा चाव।।300।। 
                    बीड़ा सूख्या मेह बिन, गोचर सूख्यौ घास। 
फिर फिर घास फिराकस में, गायां हुवै निरास।।301।। 
                    अजै बगत छै आवजा, बीत रही छै बात। 
                      सूखौ जायां भादवौ, भूडं मिलै बरसात।।302।। 
                    करै घणैरी मुरधरा, मांन अवर मनवार। 
                      मेहा वैगौ आवजा, लुल लुल करां जुहार।।303।। 
                    खाड़ी बंगाली खरी, अरबी खाड़ी और। 
                      ऊठ परौ झट आवजा, मानसून सेंजोर।।304।। 
                    फतह करौ मेहा फजल, जीवां बधसी खून। 
                      मानसून बिन बरसियां, सगली रहवै सून।।305।। 
                    भूखी सावण भादवै, गायां देवै गाल। 
                      पाछै किण दिन धापसी, गौर करी गोपाल।।306।। 
                    अरड़ाती भेंस्यां फिरै, ना चरबा नै घास। 
                      भूखी सावण भादवै, कियां हुवै विसवास।।307।। 
                    तड़फ रह्यौ किरसांण तन, देखौ भारत देस। 
                      जोग लिखायौ जांझली, मुरधरियौ हर मेस।।308।। 
                    झोलौ 
                      हरी च्हेर री बाजरी, लाली सिट्यां लेय। 
                      सगली ही सूखायदी, भूंडौ झोलौ बेय।।309।। 
                    बल हीणी व्ही बाजरी, भुगत ओकड़ां भीर। 
                      रोग दपेदिक कारणै, सूखै जेम सरीर।।310।। 
                    झकड़ी इसी जंवार नै, झोला री जंजीर। 
                      रोगी ज्यूं कर देय रद, गठिया वाय सरीर।।311।। 
                    सिट्यां निकली सांतरी, जबरी लील जंवार। 
                      झोलौ लागौ जोह सूं, कर दीनी बेकार।।312।। 
                    फूलां लदिया फूटरा, तिलां सांगणी तंत। 
                      झोलौ गाबड़ झाल नै, आखौ कीधौ अंत।।313।। 
                    झोला थारी झांट सूं, तिलां आभगी न्हाट। 
                      ओज देह दम मांदगी, जिम विध जावै चाट।।314।। 
                    गहरै हरित गंवार रै, बाकर आतौ बौत। 
                      झोला तणी झपेट सूं, फटकै खेली फौत।।315।। 
                    गुच्च करियौ गंवार नै, गहरी झोलै घात। 
                      जेम धणिकाय वाय तन, लै जावै संघात।।316।। 
                    बग्गर मोठां बिकसियौ, हरख दरसतां होय। 
                      दुसमी झौले दाह सूं, सटकै सूख्या सोय।।317।। 
                    पड़ै पांन पीलांदरा, मोठांमरी मरोड़। 
                      लाग्यां पांडू रोग ज्यूं, तन सत ज्यावै तौड़।।318।। 
                    फुलवासी क्यांरी करां, ग्वांर फली ना आस। 
                      मोठड़िया रै साग बिन, न्हांखौ मनां निसास।।319।। 
                    बड़ा बड़ी बणसी कियां, सीयालै सुख सात। 
                      मूंग मोठ तिलड़ा गिया, झोला री संघात।।320।। 
                    साखां सावण भादवै, मेह करी मारेल। 
                      आतां ही आसोज रै, झोलौ पड़ियौ गेल।।321।। 
                    झोला तणी झपेट सूं, दरद फसल दरसाय। 
                      सीख दियां जिम धीवड़ी, मुख मायड़ मुरझाय।।322।। 
                    झोलौ खारौ जगत नै, अणचख मारै सोट। 
                      दोय दिनां री दोट में, करदी मोटी चोट।।323।। 
                    कांणी कोजी काकड़ी, विस वादी फल गीर। 
                      रेड़ूबा लिपला थया, मीठा नहीं मतीर।।324।। 
                    दोय घड़ी री दौर में, खेती फसलां खीण। 
                      कांकड़ झोला कारणै, हुयगी आबा हीण।।325।। 
                    किसी चकारी नभ धरा, सवा हात वह हेट। 
जल ऊभी साखां झिलै, झोला तणी झपेट।।326।। 
                    साठ मणां री आस ही, आई मण ही आठ। 
                      हांण हुवै बावन मणां, साखां झोलै झाट।।327।। 
                    चौड़ै पन्ने चालणौ, चंचलियौ चौफेर। 
                      किरसांणां हांणी करण, झोलौ पड़ियौ लेर।।328।। 
                    आईसाला अधपकी, आस उजर आगूंच। 
                      एबी झोलै आवतां, करी फसल भा कूंच।।329।। 
                    अचांणचख ही आछटै, लपकै देवै लोल। 
                      झोलौ फसलां आब में, करदै राफा रोल।।330।। 
                    झोलौ मुरधर जांणनै, कियौ जबर कमठांण। 
                      केड़ौ करियौ कांकड़ा, कलपावै किरसांण।।331।। 
                    आछी फसलां देखनै, हुवौ हरख किरसांण। 
                      पुरसी थाली खोसली, झोलौ दुसमी जांण।।332।। 
                    लांपौ लागौ लेलरू, कूक डलौ, कुम लाय। 
                      घूघरियौ बलगौ धमक, ऊभै झोलै आय।।333।। 
                    बेकरियौहरियौ बलै, गया तांतणा खूट। 
                      मकड़ौ झेरणियौ मुवौ, बायां झोलै मूठ।।334।। 
                    समो काल झोल करै, बणती बिगड़ै आस। 
                      किरसांणां री सायधण,न्हांखै घणा निसास।।335।। 
                     
                    गोबर पोटा घण करा, मींगणिया रौ खात। 
                      खेतां राल्यौ कोड सूं, झोलौ करगौ घात।।336।। 
                    मूंघा लाय मजूरिया, नेगम कियौ निनांण। 
                      फसलां बलगी फूलती, पापी झोलै पांण।।337।। 
                    रिमझिम आछौ बरसतौ, सावण हुवौ सपूत। 
                      रमगत बिगाड़ी फसलरी, आय 'र झोलौ ऊत।।338।। 
                    जाण्यौ अबकी तौ सिरै, सातूं फसलां वेय। 
                      लारै झोलै लागियौ, ससतर पाती लेय।।339।। 
                    दिनड़ा पैंतालीस मे, रह छायौ उन्माद। 
                      झोलौ करबा जुलम जग, चूकै नांय सराद।।340।। 
                    भली फसल री आस में, बोरां आछा भाव। 
                      झोलौ आय बिगा डियौ, आसांमी रौ साव।।341।। 
                    झोलौ झपट दबाय दी, आसांमी आवाज। 
                      दोरौ लागै पूगतौ, बोरां बालौ ब्याज।।342।। 
                    बिरखा पैला कम हुवै, फोरौ फसलां फाल। 
                      लारै फेरूं लागियौ, झोलौ आई साल।।343।। 
                    पैली राजी बोलतौ, फूली फसलां लार। 
                      बहतै झोलौ बिगड़ियौ बो'रा रौ बैवार।।344।। 
                    बाजी किरसांणा बिखै, इसड़ी झोलै रीठ। 
                      भालै आसांमी दिसा, बो'रौ खारी मीठ।।345।। 
                    धन बागीणौ धीवड़ी करतौ पीला हाथ। 
                      दिन कटणा दोरा हुवा, झोलौ करगौ घात।।346।। 
                    हुड़ौ आवै कालजै, मोटी घर में धीव। 
                      झोला कीकर धापसी, मां बांप रौ जीव।।347।। 
                    मिनखां रौ मिनखापणौ दिन दिन पड़तौ जाय। 
                      बगत नहीं विसवासरी, हाथ हाथ नै खाय।।348।। 
                    कामण गैणौ काल में, दियौ अडांणै मेल। 
                      कीकर रह्यौ छुडावणौ, झोलौ साखांगेल।।349।। 
                    मुंडौ उतरै कांमणी, आयां तीज तिंवार। 
                      कंटी टोट्यां बोर बिन, केम करै सिणगार।।350।। 
                    झोला थारी झाट सूं, तन मन बगनौ जांण। 
                      साखां खेतां सूखियां, सूखै तन किरसांण।।351।। 
                    आस्यूं म्हैं तो बगतसर, छै कुण रोकणवार। 
                      वधतै जुग विग्यान रै, झोलौ कहै वकार।।352।। 
                    सरद 
आसोजां पख ऊजलै, प्रभा चांनणी छाय। 
तपतां पड़वै ओढणौ, डर माछिराय खाय।।353।। 
                    थाकैलौ चढजाय तन, र कर मेंणत कांम। 
                      सूतां आवै सोहणी, नींद मजूरां नायं।।354।। 
                    चोखी छिटकी चांदणी, आछौ रूत बैवार। 
                      आती सरदी नै करै, पूनम सरद जुहार।।355।। 
                    बरसालौ बीतौ भलौ, फसलां फाल फलाय। 
                      धीमा पग सरदी धरत, पूगै मुरधर आय।।356।। 
                    परकत मेल कुचेल पण, सकरौ लगै न सेंण। 
                      सावण बिरखा री लगा, साप कियौ पट गेंण।।357।। 
                    काती में आती रहै, गत धीमी सी गेंण। 
                      सीलौ मुधरौ बायरौ, सरद लगावै सेंण।।358।। 
                    लादौ 
                      सगला बारै सोवता, कर कर मौसम कोड। 
                      तड़कै लादा कारणै, लिया खेसला ओढ।।359।। 
                    नगी गिगन बिरखागियां, रात्यूं बरसै ओस। 
                      बूंदां फसलां रुंखड़ां, सरद सकै ना सोस।।360।। 
                    बूंदां चमकै ओसरी, ऊगंतै परभात। 
                      जांणक रजनी जावतां, ढुलगां मोती हाथ।।361।। 
                    कम सरदी रै कारमै, सगला बारै सोय। 
                      लादौ पड़ पड़ रातरा, रोग तनां में पोय।।362।। 
                    लादौ आधौ रोग घर, लाग्यां दूखै डील। 
                      तन माथौ भारी हुवै, रहवै आलस ढील।।363।। 
                    कातीसरौ 
कोडायौ काती  सरै, करै  कांम किरसांण। 
माल अंवैरै बगतसर,  मोड़ौ करियां हांण।।364।। 
                    कड़ब वाढतां करसणी,  छावै ताकत रोप। 
                      परसेवा री  बूंदड़ी, तन  पर मैंणत ओप।।365।। 
                    चौसालै मांचौ  लियौ, खरौै  ओढबा खेस। 
                      सरदी काती आवतां,  मुरधर कियौ प्रवेस।।366।। 
                    बहतौ मुरधर बायरौ,  मुधरौ काती मास। 
                      मसती मन मोट्यार रै, अर बूढा रै कास।।367।। 
                    बाढै कड़बी कंतड़ौ,  बंधारी धण लार। 
                      पूला झूला छाविया,  मोकल खेत मंजार।।368।। 
                    भर जुगती सूं देविया, रलै  नहीं तिल रेत। 
                      नहला भेला मोठ कर, दिया  ढूंगरा खेत।।369।। 
                    झालां भर भर जोह सूं,  लगती सिट्यां लाय। 
                      ताली पायी नीप धण, देख्यां  आवै दाय।।370।। 
                    बाजै कमती वायरौ,  लाटां इसौ लगाव। 
                      चख फाड़ै चौफेर ही, ऊभौ  कंत तिवाव।।371।। 
                    नार झिलावै छाजला,  उफणै कंतौ धांन। 
                      डूंख लियां अन गेरणै, छाणै  तकड़ी तांन।।372।। 
                    कंपी उड उड कामणी, तन  सुख छाई एम। 
                      ढाकै हलकै रूप सूं, गिरद  चंद नूं जेम।।373।। 
                    आभै छाया बादला,  कढ्यौ न लाटौ कोय। 
                      कांमणिया किरसांण  रौ, हुरक  हुरक चित होय।।374।। 
                    भिलती कांकडू, चरण  नै, हालै  द्रावां होड। 
                      ऊंचै पग उंतावला, भेलवाइ रै कोड।।375।। 
                    कालै वारी वढण मो, पालौ  करै पुकार। 
                      ऊभा खेजड़़ वांठकां, छे'ली  करै जुहार।।376।। 
                    कुरबा काचा व्है समा, लागी  परकत लार। 
                      आखी ऊमर तड़फतां,  पड़ै न करसां पार।।377।। 
                    लदिया बोरां झड़का,  आबा देवै एम। 
                      आबा हरित मझ हूचटै, राती  आबा जेम।।378।। 
                    कातीन्हाण 
मेलौ वित नर नार रौ,  पंच तिरतियां थाट। 
पोकरजी रौजल  हिलै सरदी खुलै कपाट।।379।। 
                    साधन होया सांतरा,  देण विग्यानी दोर। 
                      मावै नांही मोटरा,ं भार जातरी जोर।।380।। 
                    पुसकर पून न्हांण रौ, करै मांनखौ कोड। 
                      अड़ी जबर कातीसरै, लाटा आवै छोड़।।381।। 
                    डिकता डोर डोकरी,  थित मोट्यारा थाट। 
                      नेगम देखौ न्हांवती, गजबण पुसकर घाट।।382।। 
                    मनकाला बद  कारजां, खोट  निजर पर धीव। 
                      पुसकर नायां मांयलां, जाला कटै न जीव।।383।। 
                    कर कर नै एकासणा, सोधै  जीवण सार। 
                      जलम सुधारण आगलौ,  न्हावै काती नार।।384।। 
                    काती न्हांवै नारियां, तड़कै तड़कै ऊठ। 
                      गावै हरजस साकलै,  पावण पथ बैकुंठ।।385।। 
                    ठंडै जल सूं न्हावतां, लरै  रांम रौ नांव। 
                      पूजारी पूजा  करै, ठाकुर  द्वारै गांव।।386।। 
                    पूजारी घण  प्रेम सूं,  करै साकलै सेव। 
                      मिन्दर आवै  नारियां दरसण करबा देव।।387।। 
                    बाजै झालर टोकरा,  घुरै नगारां नाद। 
                      मिन्दर मांही  मोकला, भगत  सुणीजै साद।।388।। 
                    सुणै लुगायां भावसुद,  चित में आछौ चाव। 
                      काती महातम बांचतां आवै  मनां अछाव।।389।। 
                    करा कलेवौ कांन्ह नै, गीतां मे घण मांन। 
                      सींचण तुलसी लाय जल, नारी  जीवणसांन।।390।। 
                    बंधण जबरा बांधिया, बड़कां तणौ विवेक। 
                      जलम सुधारै जीवड़ां,  हरी नांव जग हेक।।391।। 
                    मन नै बांध्यौ मोकलौ, राख्यौ तन रौ ध्यांन। 
                      बडका कियौ विवेक सूं, मिनख  जमारै मांन।।392।। 
                    रूत सूं जीवण मेल रख,  अडिग दिया उपदेस। 
                      बंधण बड़का बांधिया, हित कारी हरमेस।।393।। 
                    बडका बंधण बांधिया, उणविध चलै न लोग। 
                      बिगड़ी हालत मांनखै,  घणा सतावै रोग।।394।। 
                    जाव 
                      गांदल चढियौ रायड़ौ,  जीरां पलकौ जाव। 
                      धाणा पत्ता धारिया,  देवै सौरभ साव।।395।। 
                    गहूं चिमआ गहराविया, सेवज वाही साख। 
                      जोरावर काली  जमी, धांनां  निपजम धाक।।396।। 
                    पांणत करतां पांणती,  राखै खोडां नेह। 
                      तातौ पांणी कूप रौ, लगै  न सरदी देह।।397।। 
                    करतां पांणत जावरी,  पूरी बिजली ताय। 
                      वोल टेज कम कारणै, घड़ी  घड़ी में जाय।।398।। 
                    धोरी सूं जल चालतौ, पूगै  जितरै फांट। 
                      त्यार फावड़ौ पांणती,  बिजली जावै न्हाट।।399।। 
                    डर मेटण धर काल रौ,  खुदा लिया नल कूप। 
                      बिजली वाला देवता,  धणियां खेवौ धूप।।400।। 
                    कम पैदा बिजली तणी, बढी  अणूंती मांग। 
                      'सप  लाई' ना  बगतसर, तौ  ई ऊंची टांग।।401।। 
                    जाव मोकलौ झेलियौ रै, बिजली री आस। 
                      धणी करसणी आपसी,  लड़ लड़ हुवै निरास।।402।। 
                    खांण खुराक 
हुवै बलवान लवण रस, पितरौ  हुवै उठाव। 
घ्रत तिक्रत पीवौ सरद, अवर  विरेचन खाव।।403।। 
                    हलकौ भोजन खावणौ,  लाग्यां आछी भूख। 
                      साटी चावल जौ गहूं, खावण  बगतां ढूक।।404।। 
                    चीणी पर वल आंवला, वन  गोभी खा से'द। 
                      पांणी हंसोदक पिवौ,  कपड़ा पै'र सफेद।।405।। 
                    दही चेल चरबी रखौ, पदारथां  परहेज। 
                      खावण चीजां उड़द री, इण  रुत राखौ जेज।।406।। 
                    दिन रा नांही सोवणौ, ना  जागौ घण रात। 
                      इयां जाबतौ सरद रूत, हुवै  न दुरबल हाथ।।407।। 
                    पित उठाव काबू करौ, देहां  सरदी दाय। 
                      बारै नांही सोवणौ,  भोजन सद्य सवाय।।408।। 
                    हेमन्त 
                      आछौ तावड़ अगन तप, भोजन  ताता भाय। 
                      ओढ'र ऊंडौ सोवणौ, छै  हेमन्त उपाय।।409।। 
                    धणा सेजां धीणौ घरां, अंगा  जोबन थाय। 
                      ओढण पैरम मोकला,  जद सीयालौ दाय।।410।। 
                    ओढण पैरण री कमी, रैवण  ना रैवास। 
                      लूकी ठंडी रोटियां, हेमन्ती दुख खास।।411।। 
                    मिगसर पौ रै मांयनै, धूजै  कांमण कंत। 
                      जाचकियां दुरलभ  जबर, हुरक  पीड़ हेमन्त।।412।। 
                    बयल तणौ हेमन्त रुत,कोप न रह्यो करु र। 
                      धीमो तप पड़गौ धरा, सीयां  मरतै सूर।।413।। 
                    नीर 
घण सीतल सरवर नखै, ठंड  तलावां तीर। 
ठंडौ व्है हेमन्त में, नदियां वालौ नीर।।414।। 
                    ऊठ साकलै संचरै,  बेवड़ियौ सिर नार। 
                      जल जमगौ नाड़ी तणौ, केम  भरै पिणियार।।415।। 
                    बरफ हुवै जल नाडियां, किण  विधि हुवै सिनांन। 
                      चमकै पांणी साकलै,  आरसियां उनमांन।।416।। 
                    गलै नीर ना ऊतरै, धूजाणौ  तन दंत। 
                      नीर तलावां नाडियां, हुवै वरफ हेमंत।।417।। 
                    तिस मिटगी सरदी वजह, पंछ्यां  ढांढा ढोर। 
                      फूलण लागा फींकरा,  नर जल मटगी जोर।।418।। 
                    सरसर वाज्यां रात सह, ठंडी  घणी समीर। 
                      पालौ बण जम जावसी, नाडूली  रो नीर।।419।। 
                    अंगां नांही अड़ण दै, भूल  र ठंडौ नीर। 
                      जल पीवै नर गुणगुणौ, तन  कफ री तासीर।।420।। 
                    कम ठाडौ बहतौ थकौ, कूप  तणौ भल जोर। 
                      जल पड़ियौ ठंडौ जमै, रुत  हेमन्ती दोर।।421।। 
                    ठंडौ पांणी नाड़ियां, कुण आवै इब न्हांण। 
                      सूनी पाल तलाब री, सरदी  रा सहनांण।।422।। 
                    समीर 
                      हेमालो ठंडौ  घणौ, वायर  सरद चलाय। 
                      सीत लहर उतराद सूं, पूगै  मुरधर आय।।423।। 
                    बालक रमता बारणै,  हवा झपट झिलजाय। 
                      नाकां सेडौ नीसरै,  धांसी धांस धपाय।।424।। 
                    बरफ पड़ी कसमीर में, के  सिमला रै पास। 
                      चालहवा उतराद  सूं, आवै  मुरधर खास।।425।। 
                    रह रह सीतल वायरौ, हाल  रह्यौ हेमन्त। 
                      जोर राखवा जाबतौ,  तौ ई पकड़ै पंथ।।426।। 
                    हिम्मत हारै  चालता, धूजै  बैठौ धीर। 
                      दपटां सगली देह नै, बचबा  हेत समीर।।427।। 
                    दपटै दोनूं कांनडा,  वायर हंदै पांण। 
                      सी कंपा तन संचरै, सरदी  रा सहनांण।।428।। 
                    कांई राखा जाबतौ,  झिलै जाबतौ ठंड। 
                      हां करतां ही वायरौ, देवै  देहां डंड।।429।। 
                    रेत 
                      दिन रा सरदी दोर सूं,  किरण रि व कमजोर। 
                      रज ठांठरगी रातरा,  अड़ियां व्है गत और।।430।। 
                    बहवै सीतल वायरौ,  रेती ठंड रसाय। 
                      रातां ठंडी रीठ सूं, ठायौ  रेत ठराय।।431।। 
                    रेचक ठंडी रेत रै, हिक  दम अडियां अंग। 
                      उछलै लाग्यां डामज्यूं, ढाव्यौ रहै न ढंग।।432।। 
                    अड़ अड़ ठंडी अग रज,  रूत हेमन्ती दाव। 
                      बेवां रूप बिगाड़ नै, घालै  एड्यां घाव।।433।। 
                    मुसकल चलणौ रेत मग, डग  डग भरत डराय। 
                      जेठ तावड़ै रेत ज्यूं, डरां  पौस रे मांय।।434।। 
                    सूनी कांकड मुरधरा,  तावड़ मघसौ भांण। 
                      ठरै बरफ ज्यूं रेतड़ौ, सरदी  रा सहनांण।।435।। 
                    पंछी 
पाना बिच बिच बैठिया, दोरी  काढै रात। 
सरदी भूल्या बोलणौ,  पंछीडा परभात।।436।। 
                    ठांठरियोड़ा कागला, छोड्यौ आपणौ वाद। 
                      सरदी कारम कोयलां,  गईदिसा दिखणाद।।437।। 
                    डांफर कारण डालियां हिलै  पंछियां हांम। 
                      चिप चिप पानां चापलै, लागी  बोल लगांम।।438।। 
                    गू गू फिरतौ रात रा,  आपणौ जोर जताय। 
                      चंचेड़र चिपिया  थकां, तरू  पंछियां ताय।।439।। 
                    सीयां मरतौ कूकड़ौ,  तड़कै चापल जाय। 
                      नेम बगत सर बोलणौ, है  हेमन्त भूलाय।।440।। 
                    उडणौ भूल्या उडगणा,  चुगौ चुगण नां बांण। 
                      चिप लुक बैठा रूंखड़ां, सरदी  रा सह नांण।।441।। 
                    गायां री दुरदसा 
                      भूख मरती गावड़ी,  छत्तै धणियां नांव। 
                      गायां बिना अडोल व्ही, गोरां  गडोल गांव।।442।। 
                    देती जितरै दूधतौ,  लातौ घरां चलाय। 
                      अद खेरौ ना आयणी, दुरासीस  दै गाय।।443।। 
                    सूनी गांया आयणी,  याद करण कै कांम। 
                      सीयां मर मर हाडकर, चिपगी  काठी चांम।।444।। 
                    दूध खात बछड़ा दहै, खेती  गायां खेव। 
                      बण पगरखियां चांमरी,  करै मिनरव री सेवा।।445।। 
                    आई आडी भूलगौ,  करी गोर रै बार। 
                      मिनख मतलबी क्यूं करै, गायां  तणी गिनार।।446।। 
                    दूध निरोगौ गाय रौ, दही  धिरत भल देह। 
                      गाय आपणी सोच भल, नरां  रखावो नेह।।447।। 
                    सिणियां पायां  छायनै, ओलौ  करियौ नांय। 
                      सीयां मरती गाय रा रूं,  ऊभा व्है जाय।।448।। 
                    गायां ऊभा रूंगता,  चिपिया हाडक जांण। 
                      सूनी रोही संचरै,  सरदी रा सहनांण।।449।। 
                    मांनखौ 
                      दुगलक भड़गा गूदडां,  सोपौ पड़ियौ सांझ। 
                      सीयालै री  रात सुण,  डोकरियांरीकांझ।।450।। 
                    चांनणी पौस  री, कवण  लहै आणंद। 
                      ऊंडा सूता ओढनै,  कर किंवाड़ी बन्द।।451।। 
                    कर धूजै सी कारणै, सदियै  सिरजणहार। 
                      आंटी टेडी ओलियां,  मंडै लगत लिखार।।452।। 
                    मांडै आंक मुनीमजी, हिलता जावै हाथ। 
                      बही लिखावट बीगड़ै,  सरदी रै संघात।।453।। 
                    ठीमर बणिया ठगण नूं, लावौ  बणिया लेय। 
                      कम तोलै मिस धूज कर,  दूसंण सरदी देय।।454।। 
                    जोरां काया जाबतौ,  आवै माल ्रोग। 
                      पेढी सेठां पूगतां,  जुड़ै धूजणी जोग।।455।। 
                    माथै कूंडौ मेलियौ,  डग डग धूजै डील। 
                      दोरी सरदी देनगी,  ढावौ मिलै न ढील।।456।। 
                    जोरावर ना  जाबतौ, तन  मन तंत तुठार। 
                      माड़ा हाल मजूरियां, लाग्यां सरदी लार।।457।। 
                    सांसौ सरदी सांचरै,  नरां बिगाड़ै नूर। 
                      दाणां खातर देनगी,  कता फिरै मजूर।।458।। 
                    आंचौ दिन रै ऊगतां, करै  मजूरी जांण। 
                      तन रौ भाड़ौ रोटियां, खाता  वल गलकांण।।459।। 
                    कम दांमां कारज घणौ, लेणी  चावै लोग। 
ताकत बिना मजूरियां, लागै वेगौ रोग।।460।। 
                    सेडौ नाकां सचरै,  बाकै सास न माय। 
                      निरधन धिपड़ी खांवतौ,  मुलक मजूरी जाय।।461।। 
                    खेती खाना सड़क अर, मीलां  तणी मिसाल। 
                      मैंणत करत मजूरियां, खोसै सरदी खाल।।462।। 
                    डांफर बाजत डील में, सीं  कंपा बड़ जाय। 
                      धींगाणै ही  धूजणी, हां  तन रही हिलाय।।463।। 
                    धरतां पग लारै धसै, धूजै  सरदी डील। 
                      तन रौ नाही जाबतौ, दियौ  गरीबी कील।।464।। 
                    करै मजुरी मावड़ी,  बालक ओठै खीप। 
                      कर पग डांफर कारणै, हुयगा  ठंडा टीप।।465।। 
                    जावै डलवा पूजतां,  करण मजूरी लांण। 
                      दूध न आवै हांचलां, जापै  मिलै न खांण।।466।। 
                    ओढण झीणौ ओरणौ,  डांफर डील धुजाय। 
                      कूकै भूखौ नांनियौ, ममता, न मुरझाय।।467।। 
                    पांनै पड़ियौ पीव रै, ठगणौ  ठेकेदार। 
                      मैंणत घम कम देनगी, देवै  कमठै लार।।468।। 
                    ऊभौ छाती ऊपरां,  नयण मुनीम दिखाय। 
                      तावड़ियौ ताकीद  में, तपबा  देवै नांय।।469।। 
                    बिन बल भारी कांम कर,  काया व्ही कमजोर। 
                      मुरचौ लागौ मांनखै,  निरधर बालक दोर।।470।। 
                    हेवां सूंकां रै हुवा, काम  बिगाडी चाल। 
                      रुका रही कज रात दिन,  फीता साही लाल।।471।। 
                    तापै ऊभा तावड़ी,  आफिस बारै आय। 
                      खोटी कांम करांणियौ, होवै आरै भाय।।472।। 
                    जबरा सरदी जाबता,  सूट बूंट इध काय। 
                      हीटर चासै ताबपा,  अफसर चेम्बर मांय।।473।। 
                    की आंरौ सरदी करै, गरम  अरोगै माल। 
                      बैठण कारां अफसरां,  आय न पाला चाल।।475।। 
                    काम करण सानी करै, फरीकेन  दै फांस। 
                      रिसवत रौ गरमास सह, अफसरियां  आवास।।476।। 
                    विरहण 
                      पौस पास में पीवजी, आवण  करदी जेज। 
                      धण नै कीकर आवड़ै, सूना  आंगण सेज।।479।। 
                    सीयालै अंधार  पख, रेचक  काली रात। 
                      होय अंधारौ पीव बिन, गुम  सुम कामण गात।।480।। 
                    ठंडा तन पट आंगणा, ठांठ  रियोड़ी सेज। 
                      पीव बिना धण कालजै, बलत  लगी घण तेज।।481।। 
                    चांद मथारै चमकतौ,  रेचक मसती रेण। 
                      पीव प्रवासी सरद धण, करदी  गत ना केण।।482।। 
                    थेंधण लारै छोडजगा खांण  कमावण आस। 
                      सीता साथै लेयनै,  रांम गया वन वास।।483।। 
                    घरां रही लिछमणी हुकम, जांण'र जबरौ भाग। 
                      सीतां सूं मोटौ थयौ, उरमीला  रौ त्याग।।484।। 
                    सत सावतरी उरमिला,  दमयंती बैवार। 
                      रग रग मं अज हूं रमै, रगत  हिन्द री नार।।485।। 
                    पीव बिना धण सेज यूं,  सस बिन ज्यूं गत गेंण। 
                      सीयालैं सीयां  मरै, रै  अंधारी रेण।।486।। 
                    ठरै सेज धण एकली, आसंूं  बहवै धार। 
                      टपका पड़ पड़डै कांचली, हुयगी  आलीगार।।487।। 
                    दिन कट जावै कांम कर,  परिजण बंतल धाप। 
                      दुसह रात हेमन्त रुत, विहरण करै विलाप।।488।। 
                    सीली दावौ 
सारी निस ठारी पड़ै, पिछमी  हवा प्रभात। 
सीली करसां पेट रै, कोजी  मारै लात।।489।। 
                    दावौ लागी फसल नै, जद  जोवै परभात। 
                      सीली वाजै वायरी,  पीला करसां गात।।490।। 
                    बलियौ दावै रायड़ौ,  लुलियौ फलियां भार। 
                      जांणक घर दातार रै, आयौ  दांम तुठार।।491।। 
                    गेगरियां हरियलचिणा,  पड़गी धोली सेफ। 
                      दावौ किरसांणां तनां,  कालक दीनी लेप।।492।। 
                    दावौ फसलां बाल दी, गुम  सुम हुयगौ गात। 
                      रोवै रात्यूं करसणी दै, माथा  रै हाथ।।493।। 
                    हीमत नांही हारणी,  धण बंधावै धीर। 
                      अबकी आडी आवसी,  मत कोसौ तकदीर।।494।। 
                    भाड़ौ मूंघौ ट्रेक्टर, खासी बो'  रौ कांन। 
                      रकम यूरियै खातरी,  देस्यां कठूं दुकान।।495।। 
                    दुख रा दिन ऐ निकलसी,  मत कर कंत कलाप। 
                      भली करैला रां सा, पीर  बड़ौ माबाप।।496।। 
                    खांणपांण 
                      बलसाली व्है  मधुर र,  तकड़ौ मिनखा तंत। 
                      ताकत वधै पचांण री, इसड़ी  रुत हेमन्त।।497।। 
                    पाक सन्नीणौ सांध नै, अवस  कलेवै खाय। 
                      मोट्यांरा बृढा  नरां, आछी  ताकत आय।।498।। 
                    अन ताजौ वपरावणौ, मालिस तनां विसेस। 
                      खाटा मीठा चीकणा,  चाबौ माल हमेस।।499।। 
                    तापौ सूरज तावड़ौ,  कऊं चांतरै और। 
                      ओढौ ऊनी काम्बली, झिलै न सरदी जोर।।500।। 
                    ऊनै पांणी न्हावणौ, सूणौ ऊंडौ जाय। 
                      उड़द देल चरबी तणा, लेवौ  माल चबाय।।501।। 
                    सिसिर 
                    मावठौ 
                      गिगन थयौ ऊमसपणौ,  पवन बजै दिखणाद। 
                      आथूणा घन निकलियां, माघ मास बरसाद।।502।। 
                    माघ लागतै मावठौ,  करै होवियां कार। 
                      सीयालू साखां  सिरै, लाभै  इणरै लारे।।503।। 
                    नभ मंडल छाई नमी, सीतल  बहै समीर। 
                      बरसण लगा बादला,  निगोठ ठंडी नीर।।504।। 
                    हुवां मावठौ मानखै,  डांफर लागी डील। 
                      रोगी हुयगा सांगणा,  रह्या निरोग छछील।।505।। 
                    सीत ल्हेर अर मावठौ, सी  करियौ सेंजोर। 
                      तप धीमौ रिव रौ पड़ै,  देख्यां सरदी दोर।।506।। 
                    सरदी जबरी सिसिर रुत, पेखां  डांफर पांण। 
                      तप रालै धर ऊपरां, डरतौ  डरतौ भांण।।507।। 
                    पन्ना 17